पहले का बेगुसराय और आज का बेगूसराय

     बेगूसराय मेरा घर है, आज कल वहां जो हालात हो गये है वो देख कर दिल दहल जाता है। कितना बदल गया है, शहर बदला सो बदला लोग कितना बदल गये। हर‌ तरफ खून खराबा, चोरी, बेईमानी , कोई किसी के घर पर तो कोई जमीन पर कब्जा कर रहा, इंसानियत मरते जा रही वहां के लोगों में..ऐसा नहीं है कि सब वैसे ही है लेकिन जितना भी है वो बेगुसराय जिले की आवोहवा बदल कर रख दिए।

     इधर 3-4 साल‌ में जितना खून खराबा हुआ है, लगता है बेगुसराय भी पाकिस्तान, सीरिया, अफगानिस्तान ना बन जाए। कमाने वाले काम कर मर रहे और जिनको मुफ्त का खाना है वो मार रहे। एक दूसरे को लूटने की फिराक में रहते जिस कारण वो किसी का भी खून करने में पीछे नहीं रहते और उनकी आने वाली पीढ़ी भी वही सीख रही, बाप 20 बरस काट कर आया तो‌ बेटा सोचता हम क्यों पीछे रहे..

    हमारा बेगुसराय तो कितना शांत हुआ करता था। लोग अपने काम में मस्त, किसानी में मस्त एक दूसरे कि मदद को तैयार फिर क्या‌ हो गया। लोग आगे बढना चाह रहे ये पीछे जा रहा.... आइए पहले पुराने बेगुसराय से मिले...

       बेगूसराय-  यह 1972 में बना, पहले तो मुंगेर जिले के उपखंड में आता था। सिमरिया घाट गंगा किनारे बसा ये जिला ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ गंगा जल जैसा ही पवित्र और शीतल था। भागलपुर की बेगम यहां महीने में एक बार गंगा स्नान को आती थी, रूकती थी तो बेगम+सराय से बेगुसराय हो गया।

    1960-70 तक बेगूसराय में रिफाइनरी, फर्टीलाइजर, थर्मल ये सब आ गया था। यहां के लोगों को रोजगार मिला, पैसा भी हुआ। लेकिन फिर भी लोग किसानी करते अपनी‌ जिंदगी जी रहे थे। बेगूसराय में अगल-बगल के गांव, जिले से भी लोग रोजगार के लिए आने लगे।

    वो लोग आए तब यहां रोजगार और भविष्य के लिए जमीन खरीदने लगे फिर धीरे-धीरे शहर बढ़ने लगा।‌ जो लोहियानगर कभी जंगल हुआ करता था अभी बेगूसराय का सबसे बड़ा वार्ड में आता है शायद। मैं जब 2003-05 में पढ़ती थी उस समय लोहियानगर बीया-बान था। आज हर गली में बस घर ही‌ घर है।

    ये हाल केवल लोहिया नगर का ही नहीं है, उसके सटे हर गांव का है। जो जमीन कभी 40-50 हजार में कोई ना पुछता था आजकल उसी जमीन के 40-50 लाख मिल रहे। बेचने वाले ने तो उस समय बेच दिया अब दाम देख कर फिर हक जता रहे।

   अगर मैं ग़लत कह रही तो आप बताएं, अभी बेगूसराय में ज्यादातर खून जमीन के लिए ही हो रहे। फिर लूट पाट के लिए। वहां लोग कमाना छोड़ दिए कि मेहनत कौन करे दिनभर थका हरा आदमी आता है कुछ उच्चके किस्म के लोग चाकू की नोंक पर लूट रहे। पचम्बा बाघी के बीच पहले बहुत सुना होता था वहां आए दिन लोग को लूट लेते थे, आजकल तो वहां भी पुरा भर गया है।

     अब तो लोग वहां घर में घुसकर लूटते... फिर एक कारण आया जात-पात.. पहले सब एक साथ रहते थे, एक दूसरे के सुख दुख में खड़े लेकिन कुछ राजनीतिक पार्टियों के टुच्चे किस्म के नेता ने जात - पात कह कर हमारी शांति भंग कर दी। इस कारण भी कुछ जगहों पर मार होता है।

    अभी इसी 15-20 दिन में लगभग 10-15 लोग मरे हैं। 4-5 दिन तो गोली बारी भी हुई है। एक दो एक्सीडेंट। बेगूसराय की ऐसी हालात ‌‌‌‌‌देख बुरा लगता कहीं मेरा शहर भी तो खूनी खेल में तो ना डुब रहा। लोग कैसे सुरक्षित रहेंगे, कल हम अपने बच्चों को कैसा भविष्य दे रहे। अपने बच्चों के लिए कुछ अच्छा नहीं कर सकते तो बुरा क्यों कर रहे... उनके लिए तो कम से कम एक अच्छा शहर दें...

    

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