2001 में संसद पर हुए हमले की पुरी कहानी

      आज 17 साल हो गए सांसद पर हुए हमले के..13 दिसंबर 2001 में हमला हुआ था। इस हमले में दिल्ली पुलिस जवान समेत 9 लोग शहीद हुए थे।रोज के जैसे ही एंबेसेडर कार आ रही थी।उस दिन भी एक सफेद एम्बेस्डर कार में आए 5 आतंकवादियों ने 45 मिनट में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर को गोलियों से छलनी कर पुरे देश को झकझोर दिया था।

   पुरी कहानी- 

   सुबह के 11 बजकर 20 मिनट हो रहे थे।उन दिनों संसद में ताबुत घोटाले को लेकर बवाल मचा हुआ था।उस दिन भी इस मुद्दे पर लोकसभा और विधानसभा में शोर-शराबे के बाद दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित कर दी गई।

     इसके बाद कुछ सांसद बाहर आ कर बातचीत करने लगे तो कुछ हाॅल में रहकर ही चर्चा करने लगे। जिस वक्त पार्लियामेंट के अंदर इस तरह का माहौल था,उसी वक्त संसद मार्ग पर अलग हलचल हो रही थी।पार्लि पार्लियामेंट में तैनात सिक्यूरिटी ऑफिसर के वायरलेस पर मैसेज आता है कि वाइस प्रेसिडेंट कृष्ण कांत घर जाने के लिए निकलने वाले हैं।ऐसे में उनके काफिले की गाड़ियां गेट नंबर 11 के सामने लाइन में खडी कर दी गई।

   वाइस प्रेसिडेंट किसी भी वक्त बाहर आने वाले थे।तब तक सफेद एम्बेस्डर कार लोहे के दरवाजे को पार करते हुए गेट नंबर 12 तक पहुंच चुकी थी।इसी गेट से राज्यसभा के भीतर जाने का रास्ता जाता है।कार इस दरवाजे से उधर की ओर आगे बढ़ गई जहां वाइस प्रेसिडेंट के कारों का काफिला खड़ा था।

  अब 11 बजकर 35 मिनट हो गए थे। दिल्ली पुलिस के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर जीतराम वाइस प्रेसिडेंट के काफिले में एस्कार्ट वन कार पर तैनात थे।जीतराम को सामने से आती हुई सफेद एंबेसेडर दिखाई दी।सेकेंडों में ये कार जीतराम के पास तक आ गई। उसकी कार के चलते रास्ता थोड़ा संकरा हो गया था। एंबेसेडर की रफ्तार धीमी होने के बजाय और तेज हो गई।वो कार की तरफ देखता रहा, अचानक ये कार बाईं ओर मुड़ गई।

    तेज गति के कारण एंबेसेडर के डरड्राइ ने अपना नियंत्रण खो देता है और सीधे उसकी गाड़ी उपराष्ट्रपति की गाड़ी से जा टकराती है। गाड़ी जैसे ही रुकती है उसके चारों गेट एक साथ खुलते हैं और उसके अंदर बैठे हथियार से लैश पांच आतंकवादियो ने सुरक्षाकर्मियों पर गोलियां बरसानी शुरू कर देते हैं और दोनों ओर से गोलीबारी शुरू हो जाती है। आतंकवादियो के पास एके 47 थे और उनके पीठ पर गोलों से भरा बैग था। आतंकवादियो ने गेट नंबर 11 से हमला करना शुरू किया। इधर  गोलियों की आवाज सुन कर संसद भवन में अफ़रा-तफ़री मंच गरी। लोग इधर-उधर भागने लगे। इस बीच जहां आतंकियों के साथ गोलीबारी हो रही थी।

  संसद परिसर के अंदर मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने अचानक हुए हमले का बड़ी वीरता से सामना किया।लोकत लोक के इस मंदिर में कोई आंच न आए, इसलिए उन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी। सुरक्षाकर्मियों ने बड़ी ही वीरता से सभी आतंकियों को मार गिराता। आतंकियों का सामना करते हुए दिल्ली पुलिस के पांच जवान,सीआर सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल और संसद के दो गार्ड शहीद हुए।16 जवान इस दौरान मुठभेड़ में घायल हुए।


   
2001 में संसद में हमले की कहानी

भारतीय संसद पर हमले के मामले में चार चरमपंथियों को गिरफ़्तार किया गया था।बाद में दिल्ली की पोटा अदालत ने 16 दिसंबर 2002 को चार लोगों, मोहम्मद अफज़ल, शौकत हुसैन, अफ़सान और प्रोफ़ेसर सैयद अब्दुल रहमान गिलानी को दोषी करार दिया था।सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफ़ेसर सैयद अब्दुल रहमान गिलानी और नवजोत संधू उर्फ़ अफ़साँ गुरु को बरी कर दिया था। लेकिन मोहम्मद अफ़ज़ल की मौत की सज़ा बरकरार रखी थी और शौकत हुसैन की मौत की सज़ा को घटाकर 10 साल की सज़ा कर दिया था। अफजल को फांसी हुई।
   

    

Post a Comment

0 Comments