क्यों ना इस बार गांव चले- 3

क्यों ना इस इस बार गांव चले -1
       ये दोनों भाग आप पढ़ चुके हैं। अमन छठ पूजा में घर आने के लिए कितना खुश था। पैकिंग हुई और सपनों में खोया था कि फोन की घंटी बजी.. अरे मां का फोन है मैंने फोन उठाया, उधर से आवाज आई "बेटा कैसे हो इस बार भी नहीं आओगे"रुआंसे आवाज में मां बोली। मैं सबको सरप्राइज देना चाहता था तो मां को कुछ बताया नहीं।बोला मां छुट्टी नहीं मिली। फिर मां से सबके बारे में पूछ कर फोन कट कर दिया।
   
    फिर अपनी यात्रा शुरू हुई। पुरे रास्ते बस यही लग रहा था कि कब घर पहुंच जाऊं।फ्लाइट दुसरे दिन सुबह में दिल्ली पहुंच गई और ट्रेन रात में थी। एक होटल में रूम लेकर तरोताजा हुए और निकल पड़े बची हुई शापिंग करने। बच्चों की पसंद के चाॅकलेट, बाबू जी के लिए सिगरेट केस, मां के लिए पूजा की किताब और भी कई सामान । शापिंग  करते करते शाम हो गई। खाना खा कर स्टेशन पर बैठे ही थे कि तभी एक जाना पहचाना चेहरा नजर आया।
 
     अरे ये तो अपना अज्जी है मैट्रिक करने के बाद दिल्ली आ गया पढ़ने और हम गांव से ही इंटर किये। फिर आइटीआइ पास कर 2 साल एक कोर्स किए और दुबई में नौकरी लग गई।सुने थे सुरवा को किसी बड़े आॅफिस में नौकरी लग गई। वैसे तो उसका नाम अजीत है लेकिन हमलोग अज्जी ही कहते थे। दौड़ के उसके पास गया बोला अरे अज्जी क्या हाल है।तुम भी इसी ट्रेन से जा रहे।
    
      वो भी देख के बहुत खुश हुआ और गले लग कर कहा अमन‌ यार कितना दिन बाद मिले,तु तो पहचान में भी नहीं आ रहा । दोनों ने बात शुरू की तभी ट्रेन आ गई मेरा और उसका बाॅगी में 3 बाॅगी का अंतर था। लेकिन हम दोनों सीट सेटिंग कर एक साथ आ गये। पुरे रास्ते अपने गांव और बचपन को याद कर कब   बेगूसराय  आ गया पता ही नहीं चला। हमलोग उतर कर घर आये।
     
      जैसे ही गेट को नाॅक किये मां ने गेट खोला और देखी तो चीख पड़ी 'अरे अमन के बाबूजी, छोटी, कहां हो सब‌ देखो कौन आया।सब आये खुशी के मारे सब रोने लगे।सबके गिफ्ट एक एक करके दिए। बाबू जी तो बहुत खुश , छोटी लैपटॉप लेकर तो फूले ना समा रही थी।हम भी मुंह हाथ धोकर निकल पड़े अपने ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ दोस्तों के साथ चौकड़ी जमाने। बाकी कहानी अब बाद में...








      
  

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